Monday, March 30, 2009

बाल साहित्य की प्रासंगिकता


आलेख / जुलाई-अक्टूबर 08
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चरण सिंह जादौन


शिक्षा बालक की अन्तर्निहित शक्तियों के विकास की सतत प्रक्रिया है। शिक्षा के द्वारा ही बालक का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास सम्भव है। पाठ्य पुस्तकों से बालक को सीमित ज्ञान ही मिलता है परन्तु बाल साहित्य से उसे सहज रूप में, जान-अनजाने, जीवन की शिक्षा भी मिलती है। कहानियों में जिन जीवन मूल्यों, चरित्रों की परोक्ष चर्चा होती है वे अंकुर के रूप में बालमन में बैठ जाते हैं और प्रेरणा देते रहते हैं।
बाल भावनाओं और मानसिकता को पढ़कर उसे गीत अथवा कविता में खूबसूरती से उकेरना दुरूह कार्य है, बाल साहित्य की रचना हेतु रचनाकार को स्वयं बाल बनाना पड़ता है, यह एक प्रकार से परकाया प्रवेश जैसी प्रक्रिया है। पिछले दो दशकों में ऐसा साहित्य लिखा गया है जो बालमन के अधिक निकट है। नव्यता रचनाकार की दृष्टि में होती है। चाँद, सूरज जैसे पुराने विषयों पर रचनाकार का नवीन दृष्टिकोण, उसे नव्यता प्रदान करता है।
हर बालक अपने मन का राजा और हर बालिका अपने मन की रानी होती है। इसलिए राजा, रानी परियों की रचनायें बालमन की अनुभूतियों का ही चित्रण है। बालमन की अनुभूतियों का चित्रण ही बाल रचनाकार की सफलता है। उन्हें यथार्थ के नाम पर समस्या प्रधान कहानियाँ देंगे तो वे पंसद नहीं करेंगे। उनके मनोविज्ञान को समझते हुए ही उन्हें नैतिक बातें सिखाई जा सकती हैं, थोथी शिक्षाप्रद कहानियाँ उनके मन में अरुचि ही पैदा करती हैं।
बच्चे ही नहीं हम सब आज संस्कृति व परिवेश से कट रहे हैं। बच्चों को संस्कृति और परिवेश की जानकारी केवल मातृभाषा में दी जा सकती है। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा भी बच्चों को संस्कृति, परिवेश, नैतिकता से दूर कर रही है। बच्चों की पाठ्य-पुस्तकें बूढ़े शिक्षा-शास्त्री तैयार कर रहे हैं जिन्हें आज के परिवेश में बच्चों के पाठ्यक्रम बनाने की न तो जानकारी है और न ही उन्हें बच्चों के मनोविज्ञान का ही पता है। बच्चों की पाठ्य पुस्तकें तैयार करने में बाल-पत्रिकाओं के सम्पादकों, बाल मनोवैज्ञानिकों, साहित्यकारों का सहयोग लिया जाना चाहिए।
बच्चों में संस्कारों, संस्कृतियों के विकास हेतु उन्हें पुस्तकें, पत्रिकायें पढ़ने हेतु प्रेरित करना चाहिए, इसके लिए उनके जन्म दिन पर पुस्तकें भेंट करने की परिपाटी डाली जानी चाहिए। टी.वी. से बच्चे विभिन्न मनोरोगों के शिकार हो रहे हैं, पत्रिकायें पढ़ने से वे इससे बचेंगे, परन्तु माता-पिता को श्रेष्ठ पुस्तकें तथा पत्रिकाओं का चयन सावधानी से करना चाहिए।
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प्रताप मार्ग, जनरल गंज,
मथुरा-281001

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