Monday, February 2, 2009

काश ! ऐसा होता

कविता ======= मार्च - जून 06

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काश ! ऐसा होता
सुप्रिया दीक्षित
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काश ! ऐसा होता
एक सपना ये सभी सच होता।
एक कली जिसमें आशा भी खिलने की,
एक चाहत थी औरों से मिलने की,
उसे कोई माली छूता।
काश ! ऐसा होता,
एक सपना ये भी सच होता।
एक बूँद बनकर आती वो किसी की हथेली पर,
छिपती किसी की पलकों पर
या सजती किसी के मस्तक पर,
किसी के नर्म होठों ने उसे भी छुआ होता।
काश ! ऐसा होता,
एक सपना ये भी सच होता।
क्या हुआ गर ‘वो’ लड़की है,
हाथों में लकीरें उसके भी हैं,
चमका सकती हैं ‘वो’ भी किस्मत तुम्हारी,
कोई और नहीं आखिर संतान है ‘वो’ तुम्हारी,
उसे आने का एक मौका तो दो,
थोड़ा ही सही पर अपना भरोसा तो दो,
छूने दो ‘इन्हें’ भी अपने सपनों का आसमान,
इतिहास गवाह है लड़कों से ज्यादा
मिला है ‘इनसे’ हमें सम्मान,
फिर तुम कहोगे एक दिन
काश ! ऐसा होता,
मेरी हर संतान इस लड़की का रूप होता।।
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189, गोपाल गंज, उरई (जालौन) उ0 प्र0

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