नवम्बर 09-फरवरी 10 ------- बुन्देलखण्ड विशेष --------------------------------------------- आलेख --- बुन्देली जीवन-शैली में व्याप्त लोक विश्वास डॉ0 उपेन्द्र तिवारी |
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हमारे समाज में विपरीत परिस्थितियों में अथवा किसी विपदा के समय जनसामान्य द्वारा कई कार्य इस मान्यता के साथ किये जाते हैं कि इस कार्य से वो विपदा या परेशानी दूर हो जाती है। ऐसे कार्य चाहे वो पूजा पाठ से सम्बन्धित हों, तंत्र-मंत्र से सम्बन्धित हों या टोने-टोटके आदि से सम्बन्धित हों, यदि उस पर लोक की सहमति हो जाती है, उसे लोक से मान्यता मिल जाती है तो वे लोक विश्वास के अन्तर्गत आते हैं। बुन्देलखण्ड में लोक विश्वासों को मुख्यतः पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(क) व्यक्तिगत विश्वास
(ख) सामाजिक विश्वास
(ग) धार्मिक विश्वास
(घ) कृषि आधारित
(ड़) टोने-टोटके
धर्म का जन्म भय की कोख से हुआ है। दैवी आपदा या रोग बीमारी से ग्रस्त होने पर कोई छोटा सा कार्य (भले ही उसका उस बीमारी से कोई सम्बन्ध न हो) होने पर वह आपदा समाप्त हो जाती है या रोगी को आराम मिल जाता है तो उसे उसी पर विश्वास होने लगता है। दूसरे व्यक्ति के पीड़ित होने पर वह उसी कार्य को करने की सलाह देता है। धीरे-धीरे यह समाज में प्रचलित हो जाता है उस पर लोक की सहमति होने पर वह व्यक्तिगत विश्वास, लोक विश्वास बन जाते हैं। कुछ लोक विश्वास बड़े ही वैज्ञानिक हैं, वह या तो धर्म से जुड़े हैं या केवल विश्वास हैं किन्तु लोक से मान्यता प्राप्त कर लोक विश्वास बन गये हैं। उदाहरणार्थ-प्रसूत-गृह के दरवाजे पर बराबर आग जलायी जाती है। जिसकी वैज्ञानिकता यह है कि गाँवो में चिकित्सा की सुविधा न होना तथा गाँव में इतनी सफाई भी नहीं होती, अतः कीटाणुओं से बचाने के लिए एक पात्र में आग जलायी जाती थी जिससे कीटाणु प्रसूति गृह में प्रवेश न करें तथा आग और धुँये से नष्ट हो जायें। यह लोक विश्वास बना कि प्रसूति-गृह ‘सौर’ के दरवाजे आग जलाने से ‘जमूले’ नहीं लगते हैं। ‘जमूले’ एक प्रकार का टिटनिस नुमा रोग है जो नवजात शिशु को हो जाता है। शिशु मृतप्राय हो जाता है या शिशु की मृत्यु हो जाती है जिसे लोक में कहा जाता है कि जमूले शिशु का खून पी गये। जब प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलने से जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहे तो प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलाने का प्रचलन समाज में प्रचलित हो गया तथा सम्पूर्ण लोक का हृदय जीतने के बाद प्रसविनी स्त्री एवं नवजात शिशु की रक्षार्थ प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलाना लोक विश्वास बन गया है।
लोक विश्वास में तंत्र-मंत्र, जादू, टोना-टोटका शामिल हैं। इस लोक जीवन के हर पहलू में कोई न कोई विश्वास देखने को मिल जाता है। जैसे नजर के लिए लोक में ऐसा विश्वास है कि नजर लगने पर बच्चे, युवा बीमार पड़ जाते हैं। नजर उतारने के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तरीका है राई-नौन उसारना अर्थात् सरसों, गेंहू की भूसी, सूखी लाल मिर्च और नमक पीड़ित व्यक्ति के चारों तरफ फेरा लगाकर (उसार कर) उल्टा मुँह करके दोनों पैरों के बीच से जलती हुयी आग में फेंक दिया जाता है। दूसरी विधि में पत्थर का टुकड़ा उसार कर आग में डाल दिया जाता है। नजर अत्यधिक होने पर पत्थर लाल पड़ जाता है। उस पत्थर को निकाल कर पानी में डाल दिया जाता है। पत्थर टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो जाये तो नजर जाती है। इसे पत्थरमारी नजर कहते हैं। तीसरे प्रकार के तरीके में चारपाई की मूँज में रुई लपेट कर बत्तीनुमा बना ली जाती है और इस पर सरसों का तेल लगा दिया जाता है। उसको उसार कर दरवाजे के कुंडे पर बाँध दिया जाता है तथा उसमें आग लगा दी जाती है। नीचे काँसे की थाली में पानी रख दिया जाता है। जले हुए सरसों के तेल की बूँदें नीचे थाली में पानी में गिरती हैं तो एक विशेष प्रकार की साँय-साँय की आवाज करती है। उस पानी को पीड़ित के माथे पर लगा दिया जाता है जिससे नजर उतर जाती है।
नवजात शिशु जिसका प्रसूति-गृह से निष्क्रमण संस्कार न हुआ हो उसके बीमार पड़ने पर दीपावली के एक दिन पहले अर्थात् चतुर्दशी-जिसको नरक चउदस या जमघंट बोलते हैं-के दिन जो दियाली जलायी जाती है उन दियाली को पानी में घिस कर पिलाने से वह रोग मुक्त हो जाता है। दूसरे प्रकार में सात छप्पर के फूस निकाल कर उसको जलाया जाता है। उसकी राख माथे पर लगाने से टोना दूर हो जाता है। दूध देने वाले जानवर नजर या टोने की वजह से दूध देना बन्द कर देते हैं तो उन्हें बया चिड़िया के घोंसले को जलाकर सेंक दिया जाता है। जिससे वह नजर या टोना से मुक्त होकर पुनः दूध देने लगते हैं।
बच्चे मुँह से लार गिराते हैं। ऐसी मान्यता है कि बच्चे की बुआ को लड्डू में लार खिला दी जाये तो बच्चे लार गिराना बन्द कर देते हैं। बच्चे को सूखा रोग होने पर उसे अलस्सुबह चिता पर कपड़े पहने हुए स्नान करा दिया जाता है। बच्चे के कपड़े वहीं उतार कर फेंक दिये जाते हैं तथा लौटते समय पीछे मुड़ कर नहीं देखते हैं। माना जाता है कि इस तरह सूखा रोग ठीक हो जाता है। दूसरे प्रकार में बच्चे को कपड़ों सहित ‘आक’ (अकौआ) के पेड़ पर स्नान करा दिया जाता है। बच्चे के कपड़े निकाल कर पेड़ के ऊपर डाल दिये जाते हैं। जिससे वह पेड़ सूखने लगता है और बच्चा ठीक हो जाता है।
यदि बुखार काफी समय तक ठीक न हो तो शनिवार या बुधवार का सुबह चूल्हे की राख दोनों हाथों में भर कर यह कहते हुए घर से चलें कि चलो गंगा स्नान कर आयें। तिराहे या चौराहा मिलने पर उस राख को वहीं छोड़ दिया जाता है और कहा जाता है कि तुम्हीं चले जाओ गंगा स्नान के लिए। इससे पुराना बुखार अथवा एक दिन छोड़ एक दिन आने वाला बुखार ठीक हो जाता है।
चेचक निकल आने पर शीतला माता की मनौती मानी जाती है। नीम के पेड़ की छोटी सी डाल (जिसे झौंका कहा जाता है) रोगी के पास रख दी जाती है। घर में छोंक, बघार, नहीं लगाया जाता है। मनौती मानने वाला व्यक्ति हजामत, बाल इत्यादि नहीं बनवाता; जूते, चप्पल नहीं पहनता है। प्रतिदिन मन्दिर जाकर शीतला माँ का जलाभिषेक करता है तथा चरणों से बह कर जो जल निकालता है उसे रोगी को पिलाया जाता है। रोगी के ठीक होने पर माँ की विधिवत पूजा की जाती है।
आँखों में इन्फैक्शन होने को ‘आँख आना’ कहा जाता है। इस समय नीम का झौंका सदैव अपने पास रखा जाता है क्योंकि लोक विश्वास है कि नीम में ‘देवी’ का वास होता है। इसीलिए नीम एवं पीपल के हरे पेड़ नहीं काटे जाते हैं।
विवाह के समय भी किये जाने वाले सैकड़ों विश्वास ऐसे ही हैं। मान्यता है कि बारात चली जाने पर सभी देवता, अच्छी आत्मायें बारात के साथ चली जाती हैं किन्तु अनिष्टकारी आत्माओं से निवेदन कर स्त्रियाँ उन्हें रोक लेती हैं। उनके लिए वे रीति-रिवाज रात में होने वाले ‘नकटौरा’ के अन्तर्गत करती हैं। इसमें द्वार-चार, बाजे बजना, पंगत होना, कन्यादान, भाँवर इत्यादि बारात जैसे कार्यक्रम सम्पन्न किये जाते है। इस कार्यक्रम में केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं जिनके बीच फूहड, अश्लील शब्द-बातें इत्यादि होती हैं। समझा जाता है कि इससे अनिष्टकारी आत्मायें जादू, टोना, टोटका यहीं रह जाता है तथा विवाह निर्विध्न सम्पन्न हो जाता है। विवाह समय में भाँवर के बीच बधू का भाई धान बोता है। लोक में ऐसा विश्वास है कि इससे बहन धनी होती है।
लोक आत्मा के पुनर्जन्म को मान्यता देता है। अतः जो व्यक्ति अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं या जिनको मोक्ष प्राप्त नहीं होता है, वह भूत, प्रेत, पिशाच, चुडैल, मसान इत्यादि की योनि को प्राप्त हो जाते हैं। इनके सम्पर्क में आने पर वह उसे परेशान करते हैं। तांत्रिक, गुनिया, ओझा, भगत आदि की विशिष्ट क्रिया के द्वारा उनसे निजात दिलाने का भी लोक में विश्वास किया जाता है।
जीवन के अन्य कार्यों में लोक स्थापित है यथा बुध का बरोसी, मंगलवार को चारपाई तथा छत या छप्पर नहीं डाला जाता है। इस सम्बन्ध में कहावत है कि ‘बुघ बरोसी मंगल खाट, मरै नहीं तो आवै ताप।’
अथवा ‘मंगल मगरी (छत) बुधै खाट, मरै नहिं तो आवे ताप।’
सावन में चारपाई में मँूज नहीं भरवाई जाती है। कहा जाता है कि सावन के महीने की भरी चारपाई पर साँप चढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके अतिरिक्त साँप चारपाई पर नहीं चढ़ता क्योंकि वह चारपाई की आन मानता है।
त्यौहार वाले दिन किसी की मृत्यु होने पर उस परिवार में वह त्यौहार खोटा हो जाता है, मनाया नहीं जाता है। उसी दिन पुत्र पैदा हो या गाय बछड़े को जन्म दे तो पुनः उस त्यौहार को मनाने लगते हैं।
लोक में विश्वास है कि शगुन-अपशगुन अपना फल अवश्य देते हैं। यात्रा में निकलने पर नेवला, वेदपाठी ब्राम्हण, दही, मछली, नीलकण्ठ, बालिकायें, मंगल घट रखे स्त्री, सधवा स्त्री, मुर्दा या बछड़े को दूध पिलाती हुई गाय, मेहतरानी, वेश्या देखना शगुन है। कहा भी गया है कि ‘सन्मुख गऊ चुखाबे बच्छा, ई है सगुना सबसे अच्छा।’ इसके विपरीत खाली बर्तन, निपूता इंसान, बाँझ स्त्री, विधवा स्त्री, गधा, काना व्यक्ति या जिसकी एक आँख में कुछ खराबी हो, जिसके वक्षस्थल पर बाल न जमे हों, बिल्लौरी आँखों वाला व्यक्ति या छींक होना अपशगुन माना जाता है। यथा ‘सवा कोस तक मिलै जो काना, लौट आये वह परम सयाना।’
इसके अतिरिक्त अंगों के फड़कने से होने वाले शगुन-अशगुन भी लोक विश्वास हैं। पुरुषों की दाहिनी आँख, दाहिनी भुजा फड़कना शुभ होती है।
यथा- ‘भरत नयन भुज दक्षिण फरकहि बारंहि बार।
जान सगुन मन हरष अति लागे करन विचार।।’ इसी तरह स्त्रियों की बाँयी भुजा, बाँयी आँख फड़कना शुभ होता है।
यथा- ‘मिलन खौं तो बहियाँ फरकै, बहियाँ फरकै।
दरस खों फरक रये दोई नैन।।’
पुरुषों की बाँयी आँख तथा बाँह, स्त्रियों की दाहिनी आँख तथा भुजा फड़कना अपशगुन समझा जाता है।
कृषि सम्बन्धी भी लोक के अनुभव और विश्वास हैं। जैसे ओले पड़ने पर गर्म तवा आँगन में डाल देना ऋतु की आँधी को झाड़ू दिखाना, कुऋतु की वर्षा होने पर बादल को उल्टा मूसल दिखाने पर इस तरह की अनिष्टकारी प्राकृतिक विपदा रुक जाती है। यह भी लोक का कृषिपरक विश्वास है कि अकउवा (मदार) ज्यादा होने पर, कुदवा (धान्य) नीम ज्यादा फलने पर जौ, बबूल के ज्यादा फलने पर धान अच्छा पैदा होता है। यदि कहीं आम में बौर अच्छा आये तो पूरे संवत अर्थात पूरे वर्ष सभी फसलें अच्छी होती हैं।
धार्मिक लोक विश्वासों में सभी धार्मिक कार्य सम्मिलित है। गाय और गंगा मोक्षदायिनी है। मान्यता है कि दान सभी विधि कल्याण करता है। यह लोक का परम विश्वास है कि ईश्वर द्वारा बताये गये पुण्य कार्य करना, ईश्वरवादी या ईश्वर के अधीन रहना, जो ईश्वर की शरण पकड़े रहेगा वह दो पाटों के बीच में नहीं पिस पायेगा अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर लेगा।
ये सभी लोक विश्वास हमें समाज में रहकर एक दिशा प्रदान करते हैं और जीने की प्रेरणा देते हैं। हम संघर्ष करते हुए सुख-दुख में साथ रहकर और एक दूसरे को शारीरिक व मानसिक सहारा देकर समाज में परिवार की भावना को सुदृढ़ बनाते चलते हैं।
(क) व्यक्तिगत विश्वास
(ख) सामाजिक विश्वास
(ग) धार्मिक विश्वास
(घ) कृषि आधारित
(ड़) टोने-टोटके
धर्म का जन्म भय की कोख से हुआ है। दैवी आपदा या रोग बीमारी से ग्रस्त होने पर कोई छोटा सा कार्य (भले ही उसका उस बीमारी से कोई सम्बन्ध न हो) होने पर वह आपदा समाप्त हो जाती है या रोगी को आराम मिल जाता है तो उसे उसी पर विश्वास होने लगता है। दूसरे व्यक्ति के पीड़ित होने पर वह उसी कार्य को करने की सलाह देता है। धीरे-धीरे यह समाज में प्रचलित हो जाता है उस पर लोक की सहमति होने पर वह व्यक्तिगत विश्वास, लोक विश्वास बन जाते हैं। कुछ लोक विश्वास बड़े ही वैज्ञानिक हैं, वह या तो धर्म से जुड़े हैं या केवल विश्वास हैं किन्तु लोक से मान्यता प्राप्त कर लोक विश्वास बन गये हैं। उदाहरणार्थ-प्रसूत-गृह के दरवाजे पर बराबर आग जलायी जाती है। जिसकी वैज्ञानिकता यह है कि गाँवो में चिकित्सा की सुविधा न होना तथा गाँव में इतनी सफाई भी नहीं होती, अतः कीटाणुओं से बचाने के लिए एक पात्र में आग जलायी जाती थी जिससे कीटाणु प्रसूति गृह में प्रवेश न करें तथा आग और धुँये से नष्ट हो जायें। यह लोक विश्वास बना कि प्रसूति-गृह ‘सौर’ के दरवाजे आग जलाने से ‘जमूले’ नहीं लगते हैं। ‘जमूले’ एक प्रकार का टिटनिस नुमा रोग है जो नवजात शिशु को हो जाता है। शिशु मृतप्राय हो जाता है या शिशु की मृत्यु हो जाती है जिसे लोक में कहा जाता है कि जमूले शिशु का खून पी गये। जब प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलने से जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहे तो प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलाने का प्रचलन समाज में प्रचलित हो गया तथा सम्पूर्ण लोक का हृदय जीतने के बाद प्रसविनी स्त्री एवं नवजात शिशु की रक्षार्थ प्रसूति-गृह के दरवाजे पर आग जलाना लोक विश्वास बन गया है।
लोक विश्वास में तंत्र-मंत्र, जादू, टोना-टोटका शामिल हैं। इस लोक जीवन के हर पहलू में कोई न कोई विश्वास देखने को मिल जाता है। जैसे नजर के लिए लोक में ऐसा विश्वास है कि नजर लगने पर बच्चे, युवा बीमार पड़ जाते हैं। नजर उतारने के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तरीका है राई-नौन उसारना अर्थात् सरसों, गेंहू की भूसी, सूखी लाल मिर्च और नमक पीड़ित व्यक्ति के चारों तरफ फेरा लगाकर (उसार कर) उल्टा मुँह करके दोनों पैरों के बीच से जलती हुयी आग में फेंक दिया जाता है। दूसरी विधि में पत्थर का टुकड़ा उसार कर आग में डाल दिया जाता है। नजर अत्यधिक होने पर पत्थर लाल पड़ जाता है। उस पत्थर को निकाल कर पानी में डाल दिया जाता है। पत्थर टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो जाये तो नजर जाती है। इसे पत्थरमारी नजर कहते हैं। तीसरे प्रकार के तरीके में चारपाई की मूँज में रुई लपेट कर बत्तीनुमा बना ली जाती है और इस पर सरसों का तेल लगा दिया जाता है। उसको उसार कर दरवाजे के कुंडे पर बाँध दिया जाता है तथा उसमें आग लगा दी जाती है। नीचे काँसे की थाली में पानी रख दिया जाता है। जले हुए सरसों के तेल की बूँदें नीचे थाली में पानी में गिरती हैं तो एक विशेष प्रकार की साँय-साँय की आवाज करती है। उस पानी को पीड़ित के माथे पर लगा दिया जाता है जिससे नजर उतर जाती है।
नवजात शिशु जिसका प्रसूति-गृह से निष्क्रमण संस्कार न हुआ हो उसके बीमार पड़ने पर दीपावली के एक दिन पहले अर्थात् चतुर्दशी-जिसको नरक चउदस या जमघंट बोलते हैं-के दिन जो दियाली जलायी जाती है उन दियाली को पानी में घिस कर पिलाने से वह रोग मुक्त हो जाता है। दूसरे प्रकार में सात छप्पर के फूस निकाल कर उसको जलाया जाता है। उसकी राख माथे पर लगाने से टोना दूर हो जाता है। दूध देने वाले जानवर नजर या टोने की वजह से दूध देना बन्द कर देते हैं तो उन्हें बया चिड़िया के घोंसले को जलाकर सेंक दिया जाता है। जिससे वह नजर या टोना से मुक्त होकर पुनः दूध देने लगते हैं।
बच्चे मुँह से लार गिराते हैं। ऐसी मान्यता है कि बच्चे की बुआ को लड्डू में लार खिला दी जाये तो बच्चे लार गिराना बन्द कर देते हैं। बच्चे को सूखा रोग होने पर उसे अलस्सुबह चिता पर कपड़े पहने हुए स्नान करा दिया जाता है। बच्चे के कपड़े वहीं उतार कर फेंक दिये जाते हैं तथा लौटते समय पीछे मुड़ कर नहीं देखते हैं। माना जाता है कि इस तरह सूखा रोग ठीक हो जाता है। दूसरे प्रकार में बच्चे को कपड़ों सहित ‘आक’ (अकौआ) के पेड़ पर स्नान करा दिया जाता है। बच्चे के कपड़े निकाल कर पेड़ के ऊपर डाल दिये जाते हैं। जिससे वह पेड़ सूखने लगता है और बच्चा ठीक हो जाता है।
यदि बुखार काफी समय तक ठीक न हो तो शनिवार या बुधवार का सुबह चूल्हे की राख दोनों हाथों में भर कर यह कहते हुए घर से चलें कि चलो गंगा स्नान कर आयें। तिराहे या चौराहा मिलने पर उस राख को वहीं छोड़ दिया जाता है और कहा जाता है कि तुम्हीं चले जाओ गंगा स्नान के लिए। इससे पुराना बुखार अथवा एक दिन छोड़ एक दिन आने वाला बुखार ठीक हो जाता है।
चेचक निकल आने पर शीतला माता की मनौती मानी जाती है। नीम के पेड़ की छोटी सी डाल (जिसे झौंका कहा जाता है) रोगी के पास रख दी जाती है। घर में छोंक, बघार, नहीं लगाया जाता है। मनौती मानने वाला व्यक्ति हजामत, बाल इत्यादि नहीं बनवाता; जूते, चप्पल नहीं पहनता है। प्रतिदिन मन्दिर जाकर शीतला माँ का जलाभिषेक करता है तथा चरणों से बह कर जो जल निकालता है उसे रोगी को पिलाया जाता है। रोगी के ठीक होने पर माँ की विधिवत पूजा की जाती है।
आँखों में इन्फैक्शन होने को ‘आँख आना’ कहा जाता है। इस समय नीम का झौंका सदैव अपने पास रखा जाता है क्योंकि लोक विश्वास है कि नीम में ‘देवी’ का वास होता है। इसीलिए नीम एवं पीपल के हरे पेड़ नहीं काटे जाते हैं।
विवाह के समय भी किये जाने वाले सैकड़ों विश्वास ऐसे ही हैं। मान्यता है कि बारात चली जाने पर सभी देवता, अच्छी आत्मायें बारात के साथ चली जाती हैं किन्तु अनिष्टकारी आत्माओं से निवेदन कर स्त्रियाँ उन्हें रोक लेती हैं। उनके लिए वे रीति-रिवाज रात में होने वाले ‘नकटौरा’ के अन्तर्गत करती हैं। इसमें द्वार-चार, बाजे बजना, पंगत होना, कन्यादान, भाँवर इत्यादि बारात जैसे कार्यक्रम सम्पन्न किये जाते है। इस कार्यक्रम में केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं जिनके बीच फूहड, अश्लील शब्द-बातें इत्यादि होती हैं। समझा जाता है कि इससे अनिष्टकारी आत्मायें जादू, टोना, टोटका यहीं रह जाता है तथा विवाह निर्विध्न सम्पन्न हो जाता है। विवाह समय में भाँवर के बीच बधू का भाई धान बोता है। लोक में ऐसा विश्वास है कि इससे बहन धनी होती है।
लोक आत्मा के पुनर्जन्म को मान्यता देता है। अतः जो व्यक्ति अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं या जिनको मोक्ष प्राप्त नहीं होता है, वह भूत, प्रेत, पिशाच, चुडैल, मसान इत्यादि की योनि को प्राप्त हो जाते हैं। इनके सम्पर्क में आने पर वह उसे परेशान करते हैं। तांत्रिक, गुनिया, ओझा, भगत आदि की विशिष्ट क्रिया के द्वारा उनसे निजात दिलाने का भी लोक में विश्वास किया जाता है।
जीवन के अन्य कार्यों में लोक स्थापित है यथा बुध का बरोसी, मंगलवार को चारपाई तथा छत या छप्पर नहीं डाला जाता है। इस सम्बन्ध में कहावत है कि ‘बुघ बरोसी मंगल खाट, मरै नहीं तो आवै ताप।’
अथवा ‘मंगल मगरी (छत) बुधै खाट, मरै नहिं तो आवे ताप।’
सावन में चारपाई में मँूज नहीं भरवाई जाती है। कहा जाता है कि सावन के महीने की भरी चारपाई पर साँप चढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके अतिरिक्त साँप चारपाई पर नहीं चढ़ता क्योंकि वह चारपाई की आन मानता है।
त्यौहार वाले दिन किसी की मृत्यु होने पर उस परिवार में वह त्यौहार खोटा हो जाता है, मनाया नहीं जाता है। उसी दिन पुत्र पैदा हो या गाय बछड़े को जन्म दे तो पुनः उस त्यौहार को मनाने लगते हैं।
लोक में विश्वास है कि शगुन-अपशगुन अपना फल अवश्य देते हैं। यात्रा में निकलने पर नेवला, वेदपाठी ब्राम्हण, दही, मछली, नीलकण्ठ, बालिकायें, मंगल घट रखे स्त्री, सधवा स्त्री, मुर्दा या बछड़े को दूध पिलाती हुई गाय, मेहतरानी, वेश्या देखना शगुन है। कहा भी गया है कि ‘सन्मुख गऊ चुखाबे बच्छा, ई है सगुना सबसे अच्छा।’ इसके विपरीत खाली बर्तन, निपूता इंसान, बाँझ स्त्री, विधवा स्त्री, गधा, काना व्यक्ति या जिसकी एक आँख में कुछ खराबी हो, जिसके वक्षस्थल पर बाल न जमे हों, बिल्लौरी आँखों वाला व्यक्ति या छींक होना अपशगुन माना जाता है। यथा ‘सवा कोस तक मिलै जो काना, लौट आये वह परम सयाना।’
इसके अतिरिक्त अंगों के फड़कने से होने वाले शगुन-अशगुन भी लोक विश्वास हैं। पुरुषों की दाहिनी आँख, दाहिनी भुजा फड़कना शुभ होती है।
यथा- ‘भरत नयन भुज दक्षिण फरकहि बारंहि बार।
जान सगुन मन हरष अति लागे करन विचार।।’ इसी तरह स्त्रियों की बाँयी भुजा, बाँयी आँख फड़कना शुभ होता है।
यथा- ‘मिलन खौं तो बहियाँ फरकै, बहियाँ फरकै।
दरस खों फरक रये दोई नैन।।’
पुरुषों की बाँयी आँख तथा बाँह, स्त्रियों की दाहिनी आँख तथा भुजा फड़कना अपशगुन समझा जाता है।
कृषि सम्बन्धी भी लोक के अनुभव और विश्वास हैं। जैसे ओले पड़ने पर गर्म तवा आँगन में डाल देना ऋतु की आँधी को झाड़ू दिखाना, कुऋतु की वर्षा होने पर बादल को उल्टा मूसल दिखाने पर इस तरह की अनिष्टकारी प्राकृतिक विपदा रुक जाती है। यह भी लोक का कृषिपरक विश्वास है कि अकउवा (मदार) ज्यादा होने पर, कुदवा (धान्य) नीम ज्यादा फलने पर जौ, बबूल के ज्यादा फलने पर धान अच्छा पैदा होता है। यदि कहीं आम में बौर अच्छा आये तो पूरे संवत अर्थात पूरे वर्ष सभी फसलें अच्छी होती हैं।
धार्मिक लोक विश्वासों में सभी धार्मिक कार्य सम्मिलित है। गाय और गंगा मोक्षदायिनी है। मान्यता है कि दान सभी विधि कल्याण करता है। यह लोक का परम विश्वास है कि ईश्वर द्वारा बताये गये पुण्य कार्य करना, ईश्वरवादी या ईश्वर के अधीन रहना, जो ईश्वर की शरण पकड़े रहेगा वह दो पाटों के बीच में नहीं पिस पायेगा अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर लेगा।
ये सभी लोक विश्वास हमें समाज में रहकर एक दिशा प्रदान करते हैं और जीने की प्रेरणा देते हैं। हम संघर्ष करते हुए सुख-दुख में साथ रहकर और एक दूसरे को शारीरिक व मानसिक सहारा देकर समाज में परिवार की भावना को सुदृढ़ बनाते चलते हैं।
संगीत, दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरई |
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