कविता ======= मार्च - जून 06
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क्यों भला ?
डा0 अनुज भदौरिया ‘जालौनवी’
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जो रूप है स्वयं सृजन का,
उसको मिटाते क्यों भला ?
किलकारियों की गूँज को,
बिन सुने दफनाते क्यों भला ?
क्या हम प्रगतिवादी हुये,
या भोगवादी हो गये।
अपराधमय जीवन बना,
आतंकवादी हो गये।।
अपने घरोंदे तोड़कर,
सीने फुलाते क्यों भला ? जो रूप है स्वयं.....
हम बीज बोयें, पेड़ सींचे,
और कलियाँ नष्ट कर दें।
फूल, फल अप्राप्य होगें,
हम इसे स्पष्ट कर दें।।
मासूम की मासूमियत पर,
जुल्म ढाते क्यों भला ? जो रूप है स्वयं.......
आइये मिलकर शपथ लें,
अब न कोई भू्रण बिखरे।
जन्म दें उस लाड़ली को,
ताकि घर-परिवार निखरे।।
कुल-दीप की बाती ‘अनुज’,
ये सब बुझाते क्यों भला ?
जो रूप है स्वयं सृजन का,
उसको मिटाते क्यों भला ?
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1270, नया रामनगर, उरई (जालौन)
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