कहानी / जुलाई-अक्टूबर 08
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डा0 मधु संधु
आजकल अभि दा में अतिरिक्त फुर्ती आ गई है। वह आधी रात के बाद सोते हैं और भोर से पहले ही अलार्म घड़ी टनटनाने लगती है और अभि दा के कमरे में रोशनी जगमगा उठती है। तभी माँ चाय का कप आकर रख जाती है। यह परीक्षाओं का दौर है। अभि दा का परीक्षा में प्रथम आने का संकल्प तीव्रतर है। पिछली परीक्षा में उनका तीसरा नम्बर आया था। बड़ा सदमा लगा था।
बीती रात अभि दा संगणक की किसी वेब साइट में देर तक उलझे रहे, फिर प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए थोड़ी सी टाइप की। जब सोए तो लेटते ही गहरी निद्रा में खो गए। नींद में उन्हें लगा कि धीमें मंद स्वरों में गहन अंधकार में आवाजें रेंग रही हैं। अभि दा अचम्भित से फुसफुसाटें सुनने लगे। गणित की हृष्ट-पुष्ट पुस्तक ज़ार-ज़ार रो रही थी। कम्प्यूटर की पुस्तक से सिसक-सिसक कर कह रही थी, ‘‘दीदी ! मुझे अभि दा प्यार नहीं करते। मैं तो बस उनके गले पड़ी हूँ- जैसे नापसंद बीवी। वह मेरे पास आते हैं। मुझे स्पर्शते हैं। एक एक अक्षर पर आँख गढ़ाते हैं। सवाल करते हुए कागजों पर कागज भर देते हैं, पर मैं उनकी प्रिया नहीं हूँ। पता नहीं क्यों सब जान समझ कर भी मैं अपने को बहला-बहका, सहला-फुसला नहीं पाती।’’
कम्प्यूटर नोट बुक की वेदना अपनी थी। क्षीण सी आह भरते हुए उसने सोचा कि उसका तो उसी दिन अवमूल्यन हो गया था, जिस दिन घर में मल्टी-मीडिया संगणक (कम्प्यूटर) का प्रवेश हुआ था। वह साध्य से साधन बन गई थी। रानी से चेरी हो गई थी। प्रिया से अप्रिया बन बैठी थी। उसी दिन से अभि दा पहियों वाली कुर्सी पर बैठकर संगणक पर नाना खेल खेलते रहते। संगणक ने भी शुरू में कम नखरे नहीं दिखाए। कभी जरा सी डाट छूट जाने पर ई-मेल एड्रेस गलत हो जाता, कभी एक क्लिक गलत हो जाने पर पूरी फाइल डिलीट हो जाती। कभी नो का येस और येस का कैंसल दब जाता।
पास पड़ी मैगजीन ने इठलाते हुए कहा-‘‘जानते हो हमारे अभि दा कितने अच्छे हैं। उस दिन मैंने जरा सा उचक कर देखा तो अभि दा मेरा ही नाम सर्च में भर रहे थे। मेरे अगामी अंक को सबसे पहले पढ़ने के लिए। इतना प्यार करते हैं वह मुझे, यह तो उसी दिन पता चला।’’
टी. वी. ने रिलैक्सड स्वर में कहा-‘‘मुझे तो कोई शिकायत नहीं। ठीक है अभि दा मुझे पहले से कम समय देते हैं, पर मैं भी तो बुढ़ाने लगा हूँ। चलो इस बहाने थोड़ा आराम हो जाता है।’’
तभी एक खिलखिलाहट सुनाई दी। यह उसी पलंग की थी, जिस पर अभि दा लेटे हुए थे-‘‘हम तो पूरी गर्मियाँ गर्मी से छटपटाते रहते थे। कई बार तो भइया खिड़की भी खोल देते थे। लू और घूल-मिट्टी सब आती थी।जब से अभि दा ने संगणक लिया है, ए0 सी0 भी लग गया है। शीतल हवाओं में मन झूम-झूम उठता है। ऊपर से दरवाजे खिड़कियां भी बंद रहते हैं। है न मजे की बात। धूल मिट्टी से छुटकारा। हर समय साफ-सुथरे, तरो-ताजा बने रहो।’’
किसी के अंदर जलन का नाम मात्र नहीं था। सभी में मैत्री थी। कितने दिन हो गए संगणक, उसके सी0 पी0 यू0, की बोर्ड, स्पीकर्ज, स्कैनर, कुर्सी मेज को आए, पर सभी उनकी आवभगत अभी तक अतिथियों की तरह कर रहे थे। उनके अंदर शायद भारतीय संस्कृति के बीज थे, जहाँ अतिथि देवता सदृश्य होता है।
उपेक्षित पड़े स्टीरियो ने शिकायती स्वर में कहा-‘‘मैं सोचता था कि अभि दा पढाई में व्यस्त रहनें के कारण मुझे नकार रहे हैं, पर अब पता चला कि मैं तो पुराना पड़ गया हूँ। बीता हुआ कल हूँ। मैं वी0डी0ओ0 की सी0डी0 तो नहीं चला सकता।’’ ट्राली के नीचे तहाए पड़े पोंछन ने धीरे-धीरे सरकते स्टीरिओ पर चहल कदमी शुरू कर दी। उसे पूर्णतः आश्वस्त किया-‘‘तुम्हें कौन पुराना कहेगा। जरा दर्पण तो देखो कैसे चमक रहे हो। तुम्हारी आवाज समस्त इंद्र्रियों को झनझना कर रख देने की क्षमता लिए है।’’
नन्हें माउस ने अपनी पूँछ हिला, इठलाते, खिलखिलाते कहा, ‘‘अजी ! अभि दा मुझे मेरे गद्दे से नीचे टपका देते हैं तो सख्त मेज मुझे अच्छा नहीं लगता, पर मैं बुरा नहीं मनाता और उन्हें सहयोग देता जाता हूँ।’’ कुंजी पटल की खिलखिलाहट रुक ही नहीं रही थी। अभि दा का बार बार वर्ण भूलना और गलत-सलत नाब्ज दबाना- हँसी से उसके पेट में बल पड़ रहे थे।
दूर अलमारी में बैठी भाषा की पुस्तक से न रहा गया। वह कब तक चुप रहती। अंततः गुरु गम्भीर वाणी में बोली-‘‘मैं तो माँ हूँ उसकी। मैंनें उसे बोलना सिखाया है, समाज का सामना करने की सामथ्र्य दी है। मुझे तो उसका फलना फूलना ही भाता हैं। जैसे वह खुश रहे, पर उसे समय का घ्यान तो रखना ही चाहिए। हर सब्जेक्ट को सानुपात समय देना होगा, तभी उसका निस्तार होगा। समझाऊँगी उसे। हम सभी उसके साथी भी हैं और हितैषी भी। संगणक तो हमारा अपना है, प्यारा है। उसने हम सबको अपने में समों लिया है। अभि दा जब भी सर्च में कुछ भरते हैं तो कालेज सब्जेक्टस का ही कुछ होता है।’’
तभी मूक दर्शक, मूक श्रोता बनी अलार्म घड़ी कुछ ऐसे चिल्लाई कि सभी भयभीत होकर निर्जीवावस्था में चले गए। अभि दा ने अलार्म बंद किया और लाइट जला पढ़ने लगे। सुबह उनका पेपर जो था।बी-14, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय,
अमृतसर-143005
Tuesday, March 31, 2009
संगणक
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