लघुकथा / जुलाई-अक्टूबर 08
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डा0 पूरन सिंह
रामप्रसाद बहुत ही स्वाभिमानी और ईमानदार व्यक्ति था। उसने जब ठाकुर जसवीर सिंह के घर बेगार (गुलामी) करने से मना किया तो ठाकुर साहब के अहंकार को ठेस पहुँची, लगा कि किसी ने सदियों से चली आ रही परम्परा को चकनाचूर किए जाने की नापाक कोशिश की हो। फिर क्या था ठाकुर साहब ने बंदूक उठायी और रामप्रसाद की झोपड़ी की तरफ कूच कर गए।
रामप्रसाद अपनी पत्नी और सवा साल के बच्चे के साथ घर पर ही था। ठाकुर साहब को घर आया देख वह संभला ही था कि ठाकुर साहब ने अपनी दोनाली बंदूक से गोली चला दी। देखते ही देखते रामप्रसाद और उसकी पत्नी भगवान को प्यारे हो गये। मासूम बच्चा मोनू को कुछ ज्ञात नहीं था कि उसके माँ-बाप को आततायी ठाकुर ने मार डाला है। वह कभी रामप्रसाद के मृतक शरीर को देखता तो कभी अपनी माँ को। गाँव में किसी की हिम्मत नहीं थी कि रामप्रसाद के बेटे मोनू को उठाता।
बच्चा एक घंटे तक यों ही तड़पता रहा। एक घंटे के पश्चात पुलिस पहुँच गई और आला आफिसर्स, मीडियाकर्मी क्यों पीछे रहते। आफिसर्स अपनी जाँच-पड़ताल में लग गए और मीडिया-कर्मियों का फोटो सेशन शुरू हो गया। एक महिला मीडियाकर्मी चाहती थी कि मोनू रोए लेकिन मासूम मोनू कभी अपनी माँ के मृत शरीर पर लेट जाता तो कभी अपने पिता के। उसके लिए तो यह एक खेल बन गया था। महिला मीडियाकर्मी ने बहुत चाहा कि बच्चा मोनू रोए लेकिन जब वह नहीं रोया तो उसे लगा कि उसका कवरेज अधूरा रहा जा रहा है। उसने अपने बालों में लगी पिन निकालकर बच्चे मोनू के चूतड़ में चुभो दी। बच्चा असहनीय पीड़ा से बिलबिलाने लगा और चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा था। कैमरे चमकने लगे थे, खुशी से नाचती उस महिलाकर्मी ने अपने कैमरामैन से सिर्फ इतना ही कहा था ’‘वाओ!! कवरेज कम्पलीट!!’’240 फरीदपुरी,
वेस्ट पटेलनगर,
नई दिल्ली-08
Monday, March 30, 2009
कवरेज कम्पलीट
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